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Friday, August 29, 2008

ना किसी की आँख का नूर हूँ

ना किसी की आँख का नूर हूँ
ना किसी की आँख का नूर हूँ, ना किसी के दिल का करार हूँ,
जो किसी के काम ना आ सके, मैं वो एक मुश्त-ऐ-गुबार हूँ ।
ना किसी की आँख का नूर हूँ...

ना तो मैं किसी का हबीब हूँ, ना तो मैं किसी का रकीब हूँ,
जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ, जो उजाड़ गया वो दयार हूँ,
ना किसी की आँख का नूर हूँ...

मेरा रंग रूप बिगड़ गया, मेरा यार मुझसे बिचाद गया,
जो चमन फिजा से उजाड़ गया, मैं उसी की फसल-ऐ-बहार हूँ,
ना किसी की आँख का नूर हूँ...

ऐ-फातिहा कोई आए क्यूँ, कोई चार फूल चदाये क्यूँ,
कोई आके शम्मा जलाये क्यूँ, मैं वो बेकाशी का मजार हूँ,
ना किसी की आँख का नूर हूँ...

1 comment:

सोनल के शब्द said...

i dont believ this that ki ap ksisi ki ankho ka noor nai ho sakte...
bt if given one thought very well aranging of worrds and thoughts...
prayas karte raho..
shubhkamnae.